
ब्युरो रिपोर्ट दिनेश आहुजा
बिलासपुर। मानसिक दिव्यांग पुत्र और उसके पिता की नगर निगम की दुकानों की शुक्रवार को होने वाली नीलामी पर जस्टिस अरविन्द वर्मा की एकल पीठ ने रोक लगा दी है। दिव्यांगता अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रकाश में सहानुभूति पूर्वक कार्य करने हेतु भी निगम को निर्देश दिए है।
न्यायालय ने याचिकाकर्ता पुत्र और पिता को भी आदेशित किया है कि वे क्रमश: एक सप्ताह और एक माह के भीतर दुकानों कि सम्पूर्ण राशि नगर निगम को जमा करें और साथ ही नीलामी विज्ञापन के प्रकाशन में होने वाला खर्च भी निगम को अदा करे।
याचिकाकर्ता एक मानसिक दिव्यांग व्यक्ति है जिसका मानसिक चिकित्सालय, सेंदरी में निरंतर इलाज चलता रहता है, और उसके पिता अनिल पाण्डेय की इमलीपारा स्थित निगम के काम्प्लेक्स में दो दुकाने है जिसमें पिता पुत्र कबाड़ का व्यापार करते है। कोरोना काल में निरंतर दुकाने बंद रहने के कारण पिता पुत्र दुकानों का किराया और अन्य देयक निगम को अदा नहीं कर सके।
22 मई, 2025 को नगर निगम ने पिता पुत्र दोनों की दुकानों में ताला जड़ दिया और उनका कबाड़ का सारा सामान भी उठा कर ले गये। याचिकाकर्ताओं के अनेक अभ्यावेदनों का भी जब नगर निगम पर कोई असर नहीं हुआ तब उन्होंने अधिवक्ता सलीम काज़ी, फैज़ काज़ी के माध्यम से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर तर्क रखा कि वे नगर निगम को बकाया देय राशि अदा करने के लिये तैयार है, पर निगम के उच्चधिकारिगण राशि जमा लेने तैयार नहीं है, और हठधर्मिता पूर्वक दुकानों कि नीलामी हेतु तत्पर है। न्यायालय ने प्रकरण मे दिव्यांगता अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रकाश में सहानुभूति पूर्वक कार्य करने हेतु भी निगम को निर्देश दिए है।