
रिपोर्टर — सुरज पुरेना
बिलासपुर / शासन की जनसुनवाई योजना का उद्देश्य जनता की समस्याओं का त्वरित समाधान करना था, लेकिन अब यह व्यवस्था केवल कागजी खानापूर्ति बनकर रह गई है। किसान-मजदूर, महिलाएं और आम नागरिक बार-बार चक्कर लगाने के बावजूद निराश लौट रहे हैं। जनसुनवाई के दस्तावेज़ों का ढेर लग चुका है, लेकिन समाधान की संख्या बेहद कम है।

सरकंडा थाना क्षेत्र की ज़मीन विवाद पुलिस ने लगाया था गुहार , बिनैका गांव निवासी बिजेंद नौरंगे की बेटी के जन्म प्रमाण पत्र के लिए 2600 रुपये चॉइस सेंटर वालों ने की मांग और करगी रोड की महिला की वर्षों पुरानी पारिवारिक सहायता की अर्जी – ये सभी उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि व्यवस्था आमजन तक राहत पहुंचाने में असफल हो रही है।

लोगों का आरोप है कि बिना सिफारिश और पहचान के शिकायतों पर ध्यान नहीं दिया जाता। पैसे देने के बाद भी कोई समाधान नहीं मिल रहा। वहीं, जनप्रतिनिधियों की शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई होती है, जिससे आम नागरिकों में भारी असंतोष है।
नगर निगम की स्थिति भी चिंताजनक है – टूटी सड़कें, ओवरफ्लो नालियां और लचर सफाई व्यवस्था जनता को रोज़ाना परेशान कर रही है।
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि जब जागरूक और पढ़े-लिखे नागरिकों को भी समाधान के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तो ग्रामीण और अशिक्षित लोग अपनी समस्या लेकर कहां जाएं?
जनता पूछ रही है – क्या जनसुनवाई अब केवल एक औपचारिकता बन गई है या फिर कभी इसका असली उद्देश्य पूरा होगा?