
जान लें करवा चौथ से जुड़ी इन 6 मान्यताओं के बारे में। जो आपके व्रत का पूरा फल देने में मदद करेंगी।
बिलासपुर करवा चौथ का त्योहार कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सुखी दाम्पत्य जीवन और पति की लंबी उम्र की कामना के साथ निर्जला व्रत करती हैं और चांद को अर्घ्य देने के साथ व्रत खोलती हैं। वैसे तो किसी भी व्रत और त्योहार की जानकारी घर के बड़े-बुजुर्ग ही देते हैं और कई बार स्थानीय पूजा-पाठ और रिवाज उसमे शामिल होते हैं। करवा चौथ से जुड़ी कुछ मान्यताएं जिसके बारे में कुछ महिलाओं को नहीं पता होता। जानें उन मान्यताओं के बारे में..

क्या हर साल नया करवा और चलनी खरीदना जरूरी होता है?
नहीं, ऐसा बिल्कुल नही है। आप पुरानी चलनी और करवा का इस्तेमाल हर साल करवा चौथ की पूजा के लिए कर सकती हैं। काफी सारी महिलाएं शादी के वक्त मिले करवे और चलनी से ही सालों पूजा करती हैं।
पूजा में चढ़े सुहाग के सामान का क्या करें
पूजा में चौथ माता को चढ़े सुहाग के सामान को आमतौर पर घर की बड़ी महिला या सास को दिया जाता है। लेकिन अगर घर में बड़ी महिला नहीं है तो उसे मंदिर में रख दें या किसी पंडित को दे दें। वहीं गौरी माता को चढ़े सुहाग के सामान को खुद इस्तेमाल में लाएं।
प्रचलित है ये कहावत
‘रुठयां मनाना नहीं, सुतया जगाना नहीं’
मान्यता है कि करवा चौथ के दिन रूठे पति को नहीं मनाते हैं और वहीं सोते हुए पति को जगाने की भी मनाही होती है।
कैंची, सूई जैसी चीजों से रहें दूर
इसके साथ ही मान्यता है कि करवा चौथ के दिन सूई में धागा नहीं डालते। कैंची और छूरी से भी दूरी रखते हैं।
सुहाग का जोड़ा पहनें
करवा चौथ की पूजा के लिए मान्यतानुसार सुहाग यानी शादी का जोड़ा पहनने की परंपरा है। लेकिन अगर शादी का जोड़ा फिट नहीं हो तो किसी शुभ रंग जैसे लाल, पीला, नारंगी, गुलाबी जैसे कलर के कपड़ों को पहनें।
बालों को बांधकर करें पूजा
इसके साथ ही करवा चौथ की पूजा के वक्त बालों को करीने से बांधकर पूजा करनी चाहिए।