ट्रांसफर के एक साल बाद भी अधिकारी पद पर कायम अब मिला पीएम आवास योजना का अतिरिक्त प्रभार
जिला पंचायत बिलासपुर की कार्यशैली,पारदर्शिता और प्रशासनिक जवाबदेही पर उठे गंभीर सवाल
बिलासपुर :- जिला पंचायत बिलासपुर में एक ऐसा मामला उजागर हुआ है जिसने पूरे प्रशासनिक ढांचे की कार्यशैली,नियमों के पालन और पारदर्शिता पर सवालिया निशान लगा दिए हैं। बताया जा रहा है कि जिला पंचायत में पदस्थ परियोजना अधिकारी वंदना गबेल का स्थानांतरण अक्टूबर 2024 में ही कर दिया गया था,लेकिन एक वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आज तक उन्हें न तो रिलीव किया गया है और न ही उनके स्थान पर किसी नए अधिकारी की नियुक्ति की गई है।

इस दौरान वे लगातार उसी पद पर कार्यरत रहीं,मानो स्थानांतरण आदेश केवल औपचारिकता भर रहा हो। और अब विभागीय निर्णय ने सभी को चौंका दिया है — वंदना गबेल को प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) जैसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट का अतिरिक्त प्रभार भी सौंप दिया गया है। यह कदम विभागीय स्तर पर गहरी चर्चाओं का विषय बन गया है और प्रशासनिक निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है।
सूत्रों के अनुसार,स्थानांतरण आदेश के बावजूद अधिकारी को पद पर बनाए रखने के पीछे विभागीय स्तर पर प्रभावशाली दबाव और मनमानी रवैये की बातें सामने आ रही हैं। कर्मचारियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि “यह मामला विभागीय सिस्टम में जमी हुई लापरवाही और चहेतों को संरक्षण देने की प्रवृत्ति का जीता-जागता उदाहरण है।”
कर्मचारियों के बीच भी असंतोष स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है। उनका कहना है कि जब किसी अधिकारी का ट्रांसफर हो जाता है तो नियमानुसार उसे पुराने पद से तत्काल मुक्त किया जाना चाहिए, ताकि प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू रूप से चल सके। लेकिन यहां मामला इसके बिल्कुल विपरीत है।
जानकारों का कहना है कि यह स्थिति राज्य शासन के ट्रांसफर नियमों की भी खुली अवहेलना है। ऐसे मामलों में सामान्यतः संबंधित अधिकारी को सात दिनों के भीतर रिलीव कर दिया जाता है। बावजूद इसके,एक वर्ष से अधिक समय तक पद पर बने रहना विभागीय मिलीभगत या उदासीनता का संकेत देता है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार,प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी जनहित से जुड़ी योजना का दायित्व ऐसे अधिकारी को सौंपना जो पहले से ही ट्रांसफर आदेश के अधीन है, न केवल शासन के निर्देशों की अवहेलना है बल्कि यह प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।
स्थानीय स्तर पर यह मुद्दा अब चर्चा का केंद्र बन गया है। कई सामाजिक संगठनों और पंचायत प्रतिनिधियों ने भी इसे “विभागीय पक्षपात” का उदाहरण बताते हुए उच्च अधिकारियों से हस्तक्षेप की मांग की है। उनका कहना है कि यदि शासन ऐसे मामलों में सख्ती नहीं बरतेगा, तो स्थानांतरण आदेशों की विश्वसनीयता ही समाप्त हो जाएगी।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या जिला प्रशासन इस पूरे प्रकरण का संज्ञान लेकर वास्तविक जांच करवाता है या फिर यह मामला भी अन्य प्रशासनिक फाइलों की तरह कागजों में दबकर रह जाएगा।


