
लैलूंगा के बसंतपुर में इंजीनियर साहब : “पत्थर रखो, पैसा उठाओ, तकनीक की ऐसी की तैसी” योजना के जनक घोषित!…
पुल निर्माण नहीं, कल्पनाशीलता की प्रतियोगिता चल रही है लैलूंगा में!…
रायगढ़। कभी सोचिए, अगर न्यूटन लैलूंगा में जन्मा होता, तो गुरुत्वाकर्षण की जगह “इंजीनियर साहब का पत्थर नियम” खोजता —
“यदि नदी में पत्थर फेंको तो वह पुल बन जाता है… खासकर जब सरकारी बजट पीछे से धक्का दे।”
इंजीनियर साहब का कमाल: बिना फाउंडेशन, बिना डिज़ाइन, बिना शर्म – पुल निर्माण की ‘फ्री स्टाइल रेसलिंग’!
बसंतपुर में जो पुल बन रहा है, उसे देख ठेकेदार रो रहे हैं, इंजीनियरिंग कॉलेज शर्मिंदा हैं, और विज्ञान खुद आत्मसमर्पण कर चुका है।
यहां पत्थरों को नदी में यूं फैला दिया गया है जैसे कोई पकोड़ी तलने से पहले बेसन फैलाता हो।

सीमेंट ढलाई?
इंजीनियर साहब के अनुसार – “वो सब पुराने ज़माने की बात है। अब हम वाइब्रेशन से पुल जोड़ते हैं — हिलाओ तो टिकता है!”
जादूगर या इंजीनियर? साहब के हाथ में है बजट का चिराग!
लोगों का कहना है कि इंजीनियर साहब बजट के “अलादीन” हैं —
बस टेंडर घिसो, साइन करो, और सरकारी धन का जिन्न हाज़िर हो जाता है।
उन्होंने पुल पर ऐसा डिज़ाइन ठोंका है, जिसे देखकर AutoCAD और STAAD Pro सॉफ्टवेयर ने अपने-आप क्रैश कर लिया।
“हम इतने घटिया डिज़ाइन नहीं बना सकते,” इन सॉफ्टवेयरों ने कहा और आत्महत्या कर ली।
इंजीनियरिंग के नोबेल के लिए नामांकन तय – ‘अव्यवस्था’ श्रेणी में!
इंजीनियर साहब ने ये साबित कर दिया है कि
“अगर आपके पास हेलमेट और जेब में पेन है, तो आप किसी भी नदी को शर्मिंदा कर सकते हैं।”
उनकी महानतम उपलब्धियाँ:
पुल की नींव नहीं, नीयत मजबूत रखी।
निर्माण नहीं किया, लेकिन भुगतान में कभी देरी नहीं की।
साइट नहीं देखी, लेकिन फ़ाइल की फोटोशूट में भाग लिया।
ग्रामीण बोले – हमें पुल नहीं, इंजीनियर साहब का मूर्ति चाहिए – ताकि अगली पीढ़ी याद रखे कि मूर्खता भी एक पद होता है!
गांव के एक बुजुर्ग बोले –
“हमारे बैल भी ज़्यादा तकनीकी समझ रखते हैं। कम से कम जब वे कीचड़ देखते हैं, तो उसे पार नहीं करते।”
एक छात्र ने बोर्ड की किताब फेंकते हुए कहा –
“अब से हम इंजीनियरिंग नहीं पढ़ेंगे, हम बसंतपुर के इंजीनियर साहब को फॉलो करेंगे — क्योंकि यहां बिना पढ़े सब कुछ मुमकिन है।”
प्रशासन की स्थिति : ‘कृपया डिस्टर्ब न करें, हम लापरवाही की ध्यान साधना में हैं’
अब तक न कोई अधिकारी आया, न कोई जांच हुई।
शायद सबको इंजीनियर साहब की ‘टेक्नीकल तांत्रिक शक्तियों’ से डर लगता है।
कहीं उन्होंने चुप कराने वाला बिल पास न करवा दिया हो?
निष्कर्ष नहीं, सटीक व्यंग्य :”अगर पुल गिरा तो नदी डूबेगी नहीं — भरोसा डूबेगा।”
बसंतपुर में पुल नहीं, सरकारी मज़ाक बन रहा है।
और इंजीनियर साहब?
वो इस मज़ाक के चीफ कॉमेडियन हैं।
उनके लिए इंजीनियरिंग एक पेशा नहीं, दिमाग से भागने की कला है।