
[ रिपोर्टर — सुरज पुरेना ]
बिलासपुर। एनटीपीसी सीपत परियोजना के प्रभावित ग्रामीणों और मजदूरों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। ग्राम कौडिया, नवागांव और हरदा के लगभग 60 किसानों की जमीन एनटीपीसी की राखड़ डंपिंग और पानी निकासी से दलदली हो चुकी है। वर्ष 2011 में तहसीलदार, पटवारी और एनटीपीसी प्रबंधन द्वारा इन्हें दलदली घोषित कर हर वर्ष सरकारी दर से मुआवजा दिया जाता था। किंतु 2023 के बाद बिना किसी नोटिस या पंचनामा के मुआवजा बंद कर दिया गया। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो चुकी है।

ग्रामीणों का कहना है कि राखड़ उड़ने से पूरा क्षेत्र प्रदूषित हो गया है, जिससे दमा और सांस की बीमारियाँ फैल रही हैं। 14 जुलाई 2025 को राखड़ में दबने से स्व. रामखिलावन महिलांगे की मौत हो गई, परंतु उनके परिवार को आज तक कोई सहायता नहीं मिली। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि एनटीपीसी प्रबंधन गरीबों के जीवन को नजरअंदाज कर रहा है।

एनटीपीसी के यूनिट-2 में सिमर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी तीन माह से मजदूरों का वेतन नहीं दे रही है, विरोध करने पर मजदूरों को नौकरी से निकाल दिया गया। वहीं यूनिट-3 में विष्णु प्रकाश पोंगलिया कंस्ट्रक्शन कंपनी स्थानीय मजदूरों के स्थान पर बाहरी मजदूरों को रख रही है और उनसे 12 घंटे काम लेकर केवल 8 घंटे का भुगतान कर रही है।
डेम नंबर-2 में कार्यरत जेपी एसोसिएट्स मजदूरों को 250-300 रुपये प्रतिदिन मजदूरी दे रही है, जबकि केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी 541 रुपये तय है। मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई और सुरक्षा कार्ड जैसी सुविधाएँ भी नहीं मिल रही हैं। विरोध करने वाले मजदूरों को काम से निकाल दिया जाता है।
मजदूर यूनियन अध्यक्ष मुकेश सिंह धुरी ने बताया कि उन्होंने किसानों और मजदूरों की समस्या शासन को बताई, पर कार्यवाही के बजाय मस्तुरी थाना प्रभारी ने उन पर झूठा मामला दर्ज किया। ग्रामीणों ने मांग की है कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून (LARR) के अनुसार सभी किसानों को मुआवजा दिया जाए, मजदूरों को न्याय मिले और राखड़ प्रदूषण पर रोक लगाई जाए, अन्यथा आंदोलन तेज किया जाएगा।