फर्जी डॉक्टरों का जाल: मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़
प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी के कारण, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में फर्जी डॉक्टरों का धंधा तेज़ी से फल-फूल रहा है। ये लोग न केवल मरीजों को गुमराह कर रहे हैं, बल्कि उनकी जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैं। यह एक गंभीर विषय है जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
आकर्षक नाम, खतरनाक इरादे
फर्जी डॉक्टर अपनी क्लीनिकों के नाम बड़े शहरों के जाने-माने अस्पतालों या क्लीनिकों की तर्ज़ पर रखते हैं। इस छद्म नामकरण (Misleading Naming) का मुख्य उद्देश्य आम लोगों को आसानी से प्रभावित करना होता है। साधारण मरीज इन नामों से आकर्षित होकर, यह मानकर इलाज करवाते हैं कि उन्हें एक विशेषज्ञ और अनुभवी डॉक्टर से चिकित्सा मिल रही है। दुर्भाग्य से, उन्हें इस बात का ज़रा भी अंदाजा नहीं होता कि उनका इलाज किसी बिना लाइसेंस वाले और अपंजीकृत व्यक्ति द्वारा किया जा रहा है, जिसका सीधा अर्थ है कि उनकी सेहत ‘भगवान भरोसे’ है।
धोखाधड़ी का पूरा तंत्र
फर्जी डॉक्टरों के लिए यह गैर-कानूनी व्यवसाय बेहद लाभदायक सिद्ध हो रहा है।
- महंगी जांचों का जाल: मरीजों को यह विश्वास दिलाने के लिए कि वे “सही” डॉक्टर के हाथों में हैं, वे बड़े डॉक्टरों की तरह विभिन्न प्रकार की अनावश्यक और महंगी जांचें (Medical Tests) करवाते हैं। इन जांचों के आधार पर वे इलाज करते हैं, जिससे मरीज को लगता है कि उनका इलाज वैज्ञानिक तरीके से और सही दिशा में हो रहा है, जबकि सच्चाई यह होती है कि जांचें केवल पैसे ऐंठने और विश्वसनीयता बनाने का एक जरिया होती हैं।
- हर कोने में दुकानें: यह समस्या किसी एक गली या मुहल्ले तक सीमित नहीं है। आज लगभग हर चौराहे पर एक या दो फर्जी क्लीनिकों और जांच लैब्स का जाल फैला हुआ है। यह उनकी बढ़ती संख्या और प्रशासन की ढीली पकड़ को दर्शाता है।
- कमीशन का खेल: अपने धंधे को और अधिक मुनाफे वाला बनाने के लिए इन फर्जी डॉक्टरों ने एक खतरनाक नेटवर्क बना लिया है। बिलासपुर के कुछ निजी अस्पतालों से इनकी सांठगांठ (Collusion) है। जब किसी मरीज की हालत फर्जी इलाज के कारण अधिक गंभीर हो जाती है, तो ये डॉक्टर उन्हें तुरंत बिलासपुर के इन निजी अस्पतालों में रेफर कर देते हैं। इस रेफरल के बदले में उन्हें अच्छा कमीशन मिलता है, जिससे उनका गैर-कानूनी मुनाफा बढ़ जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में गहरी पैठ
फर्जी डॉक्टरों का यह जाल केवल बिल्हा जैसे कस्बों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों (Rural Areas) में भी अपनी जड़ें जमा चुका है। ये डॉक्टर ग्राम स्तर पर अपनी शाखाएं (Branches) खोलकर बैठे हैं। ये जानबूझकर केवल उन्हीं दवा कंपनियों की दवाइयां लिखते हैं जिनसे उन्हें सबसे अधिक कमीशन प्राप्त होता है। मरीज की सेहत या दवा की ज़रूरत से ज़्यादा महत्व कमीशन को दिया जाता है।
मरीजों की जान पर खतरा
इस पूरे गोरखधंधे का सबसे बुरा शिकार आम मरीज होता है। अक्सर ऐसे मामले सामने आते हैं जब इन फर्जी डॉक्टरों के गलत या अपर्याप्त इलाज के कारण मरीज की जान पर आफत आ जाती है। अपनी गलती छिपाने और कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए, ये फर्जी डॉक्टर आनन-फानन में मरीज को बिलासपुर के निजी अस्पतालों में रेफर कर देते हैं, जिससे मरीज के बहुमूल्य समय और धन दोनों की बर्बादी होती है।
प्रशासन की चुप्पी और आवश्यक कदम
यह अत्यंत चिंता का विषय है कि स्थानीय स्वास्थ्य विभाग एवं प्रशासन को अपने क्षेत्र में बिना पंजीकरण (Unregistered) के संचालित हो रहे क्लीनिकों की संख्या और उनकी गतिविधियों की भनक तक नहीं है। यह एक बड़ी प्रशासनिक विफलता है। यदि शीघ्र ही इन फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ कोई ठोस और कड़ी कार्रवाई नहीं की गई, तो इनकी संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ेगी, और आम जनता की जिंदगी के साथ यह खिलवाड़ बदस्तूर जारी रहेगा।
तत्काल मांग: स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन को चाहिए कि वे उचित कार्रवाई करते हुए एक अभियान चलाएं। सभी क्लीनिकों और लैब्स के पंजीकरण की जांच की जाए, और फर्जी पाए जाने वालों पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाए। यह आम बीमार तीमारदारों (Patients and their caretakers) को इन धोखेबाज़ डॉक्टरों के चंगुल में फंसने से बचाने के लिए अत्यंत आवश्यक है। जिम्मेदार अधिकारियों से बात करने का प्रयास सफल नहीं हो सका, इसलिए उनका पक्ष जानना संभव नहीं हो पाया है, लेकिन जनता के स्वास्थ्य के हित में कार्रवाई प्राथमिकता होनी चाहिए।



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