
रिपोर्टर — सुरज पुरेना
Bilaspur / छत्तीसगढ़ की मितानिनें, जिन्होंने वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ बनकर काम किया है, अब अपने हक के लिए एकजुट होकर आवाज़ उठा रही हैं। कोरोना महामारी के कठिन समय में जहां देश भर में जनजीवन अस्त-व्यस्त था, वहीं मितानिनें जान जोखिम में डालकर लोगों की सेवा में जुटी रहीं। इसके बावजूद, आज भी इन्हें ना कर्मचारी का दर्जा मिला है और ना ही न्यूनतम वेतन की गारंटी।

छत्तीसगढ़ मितानिन (आशा) यूनियन, जो स्कीम वर्कर फेडरेशन ऑफ इंडिया (SWFI – AIUTUC) से संबद्ध है, ने प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और श्रम मंत्री को ज्ञापन सौंपते हुए कई महत्वपूर्ण मांगें रखी हैं। प्रमुख मांगों में ₹26000 मासिक राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन, सरकारी कर्मचारी का दर्जा, पीएफ, ग्रेच्युटी, पेंशन और अवकाश जैसी बुनियादी सुविधाओं की मांग शामिल है।

यूनियन ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र द्वारा भेजी गई प्रोत्साहन राशि अभी तक राज्य में मितानिनों को नहीं दी गई है, जबकि अन्य राज्यों में इसका भुगतान हो चुका है। नवंबर 2018 में प्रधानमंत्री द्वारा डिजिटल इंडिया संबोधन में की गई घोषणा – जिसमें दावा प्रपत्र प्रोत्साहन राशि को दोगुना करने की बात कही गई थी – अब तक लागू नहीं हुई है।
मितानिनों की आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में घोषित ₹4 लाख की बीमा राशि भी उनके परिजनों को नहीं मिली है। यूनियन ने यह भी मांग की है कि सेवा के दौरान मृत्यु होने पर उनके परिवार को ₹10 लाख की सहायता राशि एवं एक परिजन को सरकारी नौकरी दी जाए।
अध्यक्ष विश्वजीत हारोडे, उपाध्यक्ष ममता एक्का, नीरा देवी साहू और कार्यकारी अध्यक्ष बबीता सोनी ने बताया कि अगर जल्द मांगें नहीं मानी गईं, तो मितानिनें बड़े आंदोलन के लिए बाध्य होंगी।