
रिपोर्टर — सुरज पुरेना
Bilaspur / वेंकटेश मंदिर सिम्स हॉस्पिटल स्थित भव्य पूजा अर्चना और पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि आत्मचिंतन, साधना और गुरु के प्रति समर्पण भाव व्यक्त करने का विशेष अवसर भी होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाए जाने वाले इस पर्व को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था।

गुरु पूर्णिमा के दिन साधु-संत, योगी और साधक विशेष तप और ध्यान करते हैं, वहीं गृहस्थ जीवन जीने वाले लोग अपने माता-पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु या जीवन में मार्गदर्शन करने वाले किसी भी व्यक्ति को गुरु मानकर उनका आशीर्वाद लेते हैं। इस दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन विष्णु पूजा करने से लक्ष्मी नारायण की कृपा प्राप्त होती है और आर्थिक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
गुरु पूर्णिमा सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, बल्कि बौद्ध और जैन धर्म में भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। बौद्ध परंपरा में इसी दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपना पहला उपदेश दिया था। जैन धर्म में यह पर्व 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के प्रथम शिष्य इंद्रभूति गौतम को समर्पित है।
आदि गुरु वेदव्यास द्वारा रचित वेद, पुराण और महाकाव्यों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अमूल्य धरोहर दी है। वेदव्यास ने स्वयं कहा था, “आचार्य देवो भव” — गुरु को देवता के समान मानना चाहिए।
गुरु पूर्णिमा हमें याद दिलाता है कि सच्चे ज्ञान की प्राप्ति बिना गुरु के संभव नहीं। यह दिन गुरु के चरणों में समर्पण का, और जीवन में प्रकाश फैलाने वाले ज्ञान का उत्सव है।