
( रिपोर्टर — सुरज पुरेना )
बिलासपुर न्यूज / रतनपुर पुलिस की कार्यशैली पर फिर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। पत्रकारों और आम नागरिकों पर पुलिस जहां तत्काल एफआईआर दर्ज कर देती है, वहीं बड़े रसूखदारों का नाम आते ही उसकी कार्रवाई ठंडी पड़ जाती है। रतनपुर क्षेत्र का हालिया मामला इसका ताजा उदाहरण है।
लगभग एक माह पूर्व ग्राम रानीगांव की अभय ढाबा संचालिका चंद्रलेखा बरगाह ने पंचायत सचिव और जनपद सीईओ पर गंभीर आरोप लगाए थे। महिला का कहना है कि 28 अगस्त की रात नशे में धुत सचिव और उसके साथी ढाबे पर पहुंचे और सीईओ का नाम लेकर ढाबा बंद कराने की धमकी दी। आरोप है कि वे उसे बाहर ले गए और 1 लाख 20 हजार रुपये जबरन वसूल लिए। यही नहीं, दीवार पर हाथ से लिखी नोटिस चिपका शेष रकम 15 दिन में देने दबाव बनाया।

अगले दिन जब महिला ने पंचायत कार्यालय में जानकारी ली तो साफ हुआ कि ऐसी कोई रसीद या प्रक्रिया पंचायत से जारी ही नहीं हुई। इसके बाद पीड़िता ने प्रमाण सहित रतनपुर थाने में शिकायत की, लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की। मजबूर होकर उसने बिलासपुर पुलिस मुख्यालय पहुंचकर एसएसपी रजनेश सिंह को आवेदन सौंपा। एसएसपी ने कार्रवाई के निर्देश दिए, मगर एक माह बाद भी न एफआईआर दर्ज हुई और न ही आरोपियों पर कार्रवाई हुई।
रतनपुर थाना प्रभारी संजय सिंह राजपूत का कहना है कि शिकायत मिली है और जांच जारी है, लेकिन कब पूरी होगी यह नहीं कहा जा सकता।
अब सवाल यह है कि पुलिस की जांच आखिर कितने महीनों तक चलेगी? जब सीसीटीवी फुटेज और लिखित शिकायत मौजूद है तो एफआईआर दर्ज करने में क्या दिक्कत है? क्या कानून सिर्फ आम लोगों के लिए है और रसूखदारों के लिए नहीं?