
BHARTENDU KAUSHIK (REPORTER)
छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से दान और फसल उत्सव के रूप में जाना जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस पर्व का खास महत्व है। इस दिन लोग अपने घरों में आई नई फसल को बांटकर समाज में समानता, दानशीलता और भाईचारे का संदेश देते हैं।

सभी कहते हैं छेरछेरा…’माई कोठी के धान ला हेर हेरा’..
इस पर्व को मानते हुए बच्चों और बड़े बुजुर्गों की टोलियां एक अनोखे बोल, बोलकर दान मांगते हैं. दान लेते समय बच्चे ‘छेर छेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा’ कहते हैं और जब तक घर की महिलाएं अन्न दान नहीं देती, तब तक वे कहते रहेंगे ‘अरन बरन कोदो दरन, जब्भे देबे तब्भे टरन’. इसका मतलब ये होता है कि बच्चे कह रहे हैं, मां दान दो, जब तक दान नहीं दोगे, तब तक हम नहीं जाएंगे.
पर्व की पौराणिक मान्यता….
छेरछेरा पर्व को लेकर कई पौराणिक मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान शिव ने माता अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी। इसीलिए इस दिन लोग दान को पुण्य का कार्य मानते हैं। साथ ही, इस दिन को मां शाकंभरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
बुजुर्ग मोंगरा बाई कौशिक ने बताया कि यह पर्व फसल मिसाई के बाद खुशी मनाने से संबंधित है। पर्व में अमीरी गरीबी के भेदभाव से दूर एक-दूसरे के घर जाकर छेरछेरा मांगते हुए कहते हैं छेरछेरा माई कोठी के धान ल हेर हेरा। मान्यता है कि धान के कुछ हिस्से को दान करने से अगले वर्ष अच्छी फसल होती है। इसलिए इस दिन किसान अपने दरवाजे पर आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं करते। प्राचीन काल में राजा महाराजा भी इस पर्व को मनाते थे। छत्तीसगढ़ में प्राचीनकाल से छेरछेरा पर्व की संस्कृति का निर्वहन होते आ रहा है।लोगों के घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते है। किसानों में इस पर्व को लेकर काफी उत्साह दिखा। दरअसल यह त्योहार खेती-किसानी समाप्त होने के बाद मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग गांवों से बाहर निकलते नहीं हैं। गांव में रहकर ही इस पर्व को मनाते हैं।

गांव के किसानो तथा बेजुर्गो से पता चलता है कि कलचुरी राजवंश के कोशल नरेश कल्याणसाय आठ वर्षों बाद जब अपनी राजधानी रतनपुर पहुंचे तो रानी फुलकेना ने |स्वर्ण मुद्राओं की बारिश करवाई सभी प्रजाओ को बुलाकर अन्ना दान किए और रानी ने प्रजा को हर वर्ष इस तिथि पर आने का न्योता दिया। तब से राजा के उस आगमन को यादगार बनाने छेरछेरा पर्व मनाया जा रहा।


सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व…
छेरछेरा पर्व छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। यह त्योहार सामाजिक समरसता और एकता को बढ़ावा देता है। इस पर्व के जरिए समाज के हर वर्ग को यह संदेश दिया जाता है कि संपन्न लोग जरूरतमंदों की मदद करें। दान देने की परंपरा से सामाजिक समानता और आपसी सहयोग की भावना प्रबल होती है।
इस पर्व पर प्रदेश की महिलाएं अपने घर के कोठी में रखे धान को टोकरी में निकालकर रखती हैं। जब कोई टोली ‘छेरछेरा पुन्नी’ मांगने आती है, तो उन्हें धान दान किया जाता है। यह परंपरा ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पूरी जीवंतता के साथ निभाई जा रही है। हालांकि, शहरी इलाकों में यह प्रथा धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही है।