
सूचना मांगने आए? पहले अपमान का पर्चा लो – रायगढ़ आदिवासी विकास विभाग का RTI रिवाज…
रायगढ़। जिस लोकतंत्र की बुनियाद पारदर्शिता और जवाबदेही पर टिकी हो, अगर वहीं पर सूचना का अधिकार (RTI) मांगना किसी अपराध जैसा बना दिया जाए, तो समझा जा सकता है कि सत्ता और सिस्टम कितने बेलगाम हो चुके हैं।
रायगढ़ जिले के आदिवासी विकास विभाग में एक नागरिक द्वारा की गई RTI आवेदन प्रक्रिया न सिर्फ टालमटोल और लापरवाही का शिकार बनी, बल्कि कार्यालय में बैठे कर्मचारी ने उस नागरिक द्वारा भेजे गए अन्य व्यक्ति के साथ अपमानजनक और हतोत्साहित करने वाला व्यवहार किया।

सूचना मांगी, शुल्क बताया गया – लेकिन पैसा लेकर गए अन्य व्यक्ति को लौटा दिया गया : दिनांक 13 मार्च 2025 को सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत एक आवेदन प्रस्तुत किया गया, जिसमें मण्डल संयोजक धरमजयगढ़ से संबंधित जांच दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति मांगी गई थी।
विभाग ने 91 दस्तावेजों के लिए ₹182 शुल्क निर्धारित किया, लेकिन जब आवेदक ने नियमानुसार एक अन्य व्यक्ति को यह राशि जमा करने भेजा, तो महिला कर्मचारी ने कहा : “हम किसी और से पैसा नहीं लेंगे, खुद आवेदक ही आए।” यह बयान न केवल आरटीआई कानून का खुला उल्लंघन था, बल्कि एक आम नागरिक के आत्मसम्मान पर चोट थी।
सहायक आयुक्त से बात हुई तो मिला समाधान, लेकिन कर्मचारी के व्यवहार से टूट गया भरोसा : जब यह मामला सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग के संज्ञान में लाया गया, तो उन्होंने कहा – “उस व्यक्ति के नाम से एक प्राधिकृत पत्र (Authority Letter) बना दीजिए, मैं ऑफिस में ही हूं, करवा दूंगा।”
लेकिन जिस अन्य व्यक्ति को पहले अपमानित कर लौटा दिया गया था, उसने दोबारा कार्यालय में जाने से इनकार कर दिया। उसका साफ कहना था : “सरकारी कर्मचारी ने जैसा व्यवहार किया, मैं दोबारा वहाँ कदम नहीं रखूंगा।”
सूचना छिपाने की मंशा या सिस्टम की हेकड़ी? : RTI एक्ट की धारा 6 और 7 यह स्पष्ट करती हैं कि:
- कोई भी नागरिक सूचना मांग सकता है,
- शुल्क का भुगतान कोई भी व्यक्ति कर सकता है,
- सूचना देने से मना करना दंडनीय अपराध है।
इसके बावजूद अन्य व्यक्ति से शुल्क न लेकर जानबूझकर सूचना में बाधा डालना न केवल अधिकारों का हनन है, बल्कि यह उस मानसिकता को दर्शाता है जो जनता को सवाल पूछने से हतोत्साहित करना चाहती है।
प्रशासनिक अहंकार या लोकतंत्र पर हमला? : इस पूरे मामले ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकारी कार्यालयों में अब नागरिकों से बात करने का तरीका भी सत्ता के नशे में बदल चुका है?
क्या RTI अब केवल फॉर्म भरने की खानापूर्ति बनकर रह गई है?
क्या यह मामला राज्य सूचना आयोग की दहलीज तक पहुँचेगा या फाइलों में दबा दिया जाएगा?
सूचना छिपाना सिर्फ गैरकानूनी नहीं, लोकतंत्र के खिलाफ साजिश है। अब समय है कि जिम्मेदारों से जवाब मांगा जाए – और सूचना का अधिकार फिर से सम्मान पाए।