
कानून को लात, तख्त पर ठाठ – रायपुर में पुलिस दफ्तर पर ‘सांसदी कब्जा’!”…
रायपुर | छत्तीसगढ़ की राजधानी में लोकतंत्र शर्मिंदा है, प्रशासन खामोश है और जनता हैरान! बीजेपी के राज्यसभा सांसद देवेंद्र प्रताप सिंह देव ने ऐसा खेल कर डाला है जिसे देखकर तानाशाही भी शरमा जाए। जिस बंगले को गृह विभाग ने रायपुर पुलिस कप्तान के लिए आवंटित किया था, उस पर सांसद ने धौंस दिखाकर कब्जा कर लिया और ऐलान भी ऐसा कि कोई शक बाकी न रहे – गेट पर पांच नेमप्लेटें जड़ दीं!

यह कब्जा नहीं, संविधान पर हमला है : 30 जनवरी को गृह विभाग ने स्पष्ट आदेश जारी किया था बस्तरबाड़ा, सिविल लाइन स्थित सरकारी बंगला अब रायपुर एसएसपी ऑफिस के लिए आरक्षित होगा। लेकिन सांसद साहब ने ये आदेश कूड़ेदान में फेंका और बंगले पर कब्जा कर लिया — मानो कह रहे हों, “मैं सांसद हूँ, मेरी मर्जी ही कानून है।”

राजनीतिक भूख या सत्ता की गुंडागर्दी? : राज्यसभा पहुंचने के बाद सांसद को अब तक कोई सरकारी बंगला नहीं मिला था। तो क्या इसका मतलब ये है कि वे पुलिस के लिए आवंटित बंगला हथिया लेंगे? क्या अब राजधानी रायपुर में ‘पहले आओ, कब्जा पाओ’ का नियम लागू है? गौर फरमाइयेगा – ये कोई झुग्गी-झोपड़ी नहीं, ये पुलिस कप्तान का दफ्तर था!
कांग्रेस का फटकार भरा बयान – “साय सरकार अब संविधान विरोधी सिंडिकेट” : कांग्रेस प्रवक्ता विकास तिवारी ने गुस्से से भरे शब्दों में हमला बोला:
- “बीजेपी अब चुनाव नहीं, कब्जों से राज कर रही है।
- आज पुलिस का बंगला छीना है, कल कलेक्टर का ऑफिस और फिर अदालत की कुर्सी भी हथियाने से नहीं चूकेगी!
- क्या गृह मंत्री विजय शर्मा बताएंगे कि क्या ये गुंडागर्दी उनकी अनुमति से हुई?”
अब सवाल केवल बंगले का नहीं है, ये लड़ाई ‘राजतंत्र बनाम गणतंत्र’ की है :
- जब सांसद आदेश को रौंदे और अफसर चुप रहें, तो क्या इसे लोकतंत्र कहेंगे?
- जब पुलिस के ऑफिस पर कब्जा हो जाए, तो आम आदमी कहाँ जाएगा?
- क्या राजधानी रायपुर अब संविधान की जगह “सांसद-संहिता” से चलेगी?
चुप्पियों की राजनीति : अफसर डरे, सिस्टम बिका या समर्पण में है? : पूरे घटनाक्रम में रायपुर एसएसपी से लेकर गृह विभाग तक मौन साधे हुए हैं। कोई स्पष्टीकरण नहीं, कोई कार्रवाई नहीं। क्या प्रदेश का प्रशासन अब पूरी तरह राजनीतिक रसूख के सामने घुटनों पर है?