
रिपोर्टर — सुरज पुरेना
बिलासपुर / छत्तीसगढ़ में पिछले दो दशकों से स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ बनकर काम कर रहीं मितानिन (आशा) कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर सरकार से अपने अधिकारों की मांग की है। मितानिन यूनियन ने कहा है कि 2003 से लगातार जनस्वास्थ्य सेवा में योगदान दे रहीं ये महिलाएं कोरोना महामारी के दौरान फ्रंटलाइन वॉरियर के रूप में भी सक्रिय रहीं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अब तक न तो सम्मानजनक मानदेय मिल रहा है और न ही सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ।
मितानिनों ने कहा कि उन्हें अभी भी केवल मामूली प्रोत्साहन राशि दी जा रही है, जो न्यूनतम मजदूरी के भी बराबर नहीं है। केंद्र और राज्य की कई घोषणाएं आज तक लागू नहीं हुई हैं। उनका कहना है कि आंध्रप्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों की तर्ज पर उन्हें ₹10,000 प्रतिमाह मानदेय दिया जाए, साथ ही प्रोत्साहन राशि दोगुनी की जाए। उन्होंने सेवानिवृत्ति के बाद ₹5 लाख, पेंशन योजना, बीमा भुगतान और शासकीय कर्मचारी का दर्जा देने की मांग भी दोहराई।
मितानिनों ने रविवार को प्रशिक्षण व बैठकों पर रोक लगाने और हर माह की 6 तारीख तक पूर्ण भुगतान सुनिश्चित करने की मांग की। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मुलाकात के लिए मितानिनें बिलासपुर पहुँचीं, परंतु समय न मिल पाने के कारण उन्हें निराश लौटना पड़ा।
यूनियन ने चेतावनी दी है कि यदि उनकी मांगों पर जल्द विचार नहीं किया गया, तो आंदोलन किया जाएगा।