
ब्यूरो रिपोर्टर दिनेश आहुजा
बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के लाखों कर्मचारियों के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। जस्टिस एके प्रसाद की सिंगल बेंच ने तकनीकी शिक्षा विभाग के एक प्रिंसिपल की याचिका पर सुनवाई करते हुए 16 साल बाद जारी किए गए वेतन वसूली के आदेश को पूरी तरह से अनुचित, अन्यायपूर्ण और कानून के विरुद्ध बताते हुए खारिज कर दिया है।
इस फैसले से कर्मचारियों को न केवल आर्थिक रूप से बड़ी राहत मिली है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक महत्वपूर्ण नजीर भी बन गया है।

मामला एक सरकारी सेवक का है, जिसे वर्ष 1996 में तकनीकी शिक्षा विभाग में व्याख्याता (Lecturer) के रूप में नियुक्त किया गया था। अपनी मेहनत और लगन से वह प्राचार्य के पद तक पहुंचे। लेकिन, 21 दिसंबर 2022 को विभाग ने एक आदेश जारी कर उनके वेतन से वसूली शुरू कर दी। विभाग का तर्क था कि वर्ष 2006 से उन्हें अधिक वेतन का भुगतान किया गया है।
प्रिंसिपल का कहना था कि वेतन का निर्धारण विभागीय अधिकारियों द्वारा वैध आदेशों के तहत किया गया था और इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं थी।
इस रिकवरी आदेश को चुनौती देते हुए प्रिंसिपल ने अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी और दीक्षा गौराहा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जस्टिस एके प्रसाद की सिंगल बेंच में हुई सुनवाई के दौरान, अधिवक्ता दीक्षा गौराहा ने सुप्रीम कोर्ट के “स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015)” मामले में दिए गए ऐतिहासिक फैसले का हवाला दिया।
उन्होंने तर्क दिया कि 16 वर्ष बाद की जा रही यह वसूली सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है, जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि अधिक भुगतान कर्मचारी की धोखाधड़ी, गलत बयानी या तथ्य छिपाने के कारण नहीं हुआ है, तो वसूली नहीं की जा सकती। इस सिद्धांत की पुष्टि बाद में “थॉमस डेनियल (2022)” और “जोगेश्वर साहू (2023)” मामलों में भी की जा चुकी है।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ कहा कि रिकॉर्ड में कहीं भी ऐसा प्रतीत नहीं होता कि कर्मचारी ने विभाग को गुमराह किया हो या किसी तरह का गलत ब्योरा दिया हो। वेतन का निर्धारण पूरी तरह से सक्षम प्राधिकारी के आदेशों से हुआ था और कर्मचारी ने केवल वही वेतन प्राप्त किया जो विभाग ने स्वयं तय किया था।
कोर्ट ने यह भी माना कि इतने लंबे समय बाद वसूली करना न केवल न्यायसंगत नहीं है, बल्कि कर्मचारी के आर्थिक जीवन पर असहनीय बोझ डालने जैसा है। याचिकाकर्ता पहले से ही शिक्षा ऋण और आवास ऋण के भारी बोझ तले दबा है, और वसूली होने पर उसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।
सिंगल बेंच ने 21 दिसंबर 2022 के विभागीय आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया और वसूली पर रोक लगा दी। साथ ही, यह भी निर्देश दिया कि यदि विभाग ने पहले से कोई राशि वसूल की है, तो उसे तीन माह के भीतर कर्मचारी को वापस लौटानी होगी। हालांकि, अदालत ने विभाग को यह स्वतंत्रता दी है कि वह भविष्य में नियमों के अनुसार वेतन निर्धारण में संशोधन कर सकता है, बशर्ते कर्मचारी को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान किया जाए।