
( रिपोर्टर — सुरज पुरेना )
जांजगीर। आस्था और श्रद्धा का प्रतीक मानी जाने वाली मीरा दातार दरगाह कश्मीर की प्रमुख दरगाहों में शुमार है। “मीरा” शब्द का अर्थ है बहादुर और “दातार” का अर्थ दाता या दान देने वाला होता है। यह पवित्र तीर्थस्थान बुरी शक्तियों को दूर भगाने और विशेषकर उन महिलाओं को स्वस्थ करने के लिए प्रसिद्ध है जो राक्षसों या दुष्ट जिन्नों के प्रभाव में आ जाती हैं।
दरगाह का निर्माण सखी ज़ैनुद्दीन वली की याद में किया गया था। वे नुंद ऋषि के प्रमुख शिष्यों में से एक और ऋषि संप्रदाय के दूसरे आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। यही कारण है कि यह स्थल न सिर्फ़ मुस्लिम समाज बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच पवित्र और पूजनीय माना जाता है।

मान्यता है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इसी आस्था के चलते हर साल हजारों की संख्या में लोग यहाँ दर्शन करने पहुँचते हैं। बताया जाता है कि पीड़ित की मन्नत पूरी होने के बाद भी लोग दोबारा दरगाह आकर नजराने के रूप में चादर चढ़ाते हैं।
जांजगीर जिले में सुरेंद्र कुमार सूर्यवंशी भी पूरे विश्वास और आस्था के साथ मीरा दातार दरगाह पहुँचे हैं। उनका कहना है कि उन्होंने अपने जीवन की बड़ी मन्नत लेकर दरगाह की चौखट पर सिर नवाया है। इस दरगाह से जुड़ा विश्वास इतना गहरा है कि यहाँ मंत्री से लेकर स्थानीय लोग और अधिकारी तक मन्नतें माँगने आते हैं।
दरगाह के प्रति यह आस्था इस बात को दर्शाती है कि आज भी इंसान की उम्मीदें और विश्वास धार्मिक सीमाओं से परे होकर आध्यात्मिक शक्ति की शरण में जाते हैं। यही कारण है कि मीरा दातार दरगाह को आस्था, विश्वास और चमत्कारों का संगम माना जाता है।