बिलासपुर में उग्र हुआ जन-आंदोलन: ‘लिंगियाडीह बचाओ’ संघर्ष निर्णायक मोड़ पर, शहर की सामूहिक आवाज़ बना बेदखली के खिलाफ गुस्सा
नगर निगम की अस्पष्ट कार्रवाई के विरोध में सड़कों पर पूरा शहर; 113 परिवारों के भविष्य पर संकट
बिलासपुर, [10:12:2025]: बिलासपुर शहर का लिंगियाडीह बचाओ सर्वदलीय अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन आज अपने 18वें दिन एक निर्णायक और विस्फोटक स्थिति में पहुँच गया है। नगर निगम द्वारा दुर्गानगर-चौक क्षेत्र के 113 परिवारों को घर खाली करने के नोटिस दिए जाने के विरोध में शुरू हुआ यह संघर्ष अब केवल एक स्थानीय मुद्दा न रहकर, पूरे शहर की सामूहिक असंतोष की आवाज बन चुका है।

आज, धरना स्थल पर उमड़ा विशाल जनसमूह इस बात का प्रमाण था कि आम जनता में नगर निगम की कथित अमानवीय और अपारदर्शी बेदखली कार्रवाई के खिलाफ गुस्सा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। सुबह से ही विभिन्न सामाजिक, व्यापारिक और राजनीतिक संगठनों के प्रतिनिधि समूहों में धरना स्थल पर पहुँचते रहे, और दोपहर तक यह क्षेत्र नारों, तख्तियों और जोशीले भाषणों से गूंज उठा।
जन-सैलाब और व्यापक समर्थन: एक मंच पर आए राजनीतिक दल और नागरिक समाज

इस आंदोलन की सबसे बड़ी विशेषता इसका सर्वदलीय और सर्व-सामाजिक स्वरूप है। विभिन्न सामाजिक संगठनों, व्यापारी संघों, महिला समूहों, युवा संगठनों, मजदूर संघों और अलग-अलग राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने एक मंच पर आकर इसे एक विशाल रूप दिया है। आंदोलनकारियों का स्पष्ट आरोप है कि:
“नगर निगम की यह बेदखली की कार्रवाई गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के जीवन और भविष्य के साथ सीधा खिलवाड़ है। यदि शहर में विकास योजनाएँ बन रही हैं, तो निगम को पारदर्शिता बरतते हुए वास्तविक योजनाओं को जनता के सामने प्रस्तुत करना चाहिए, न कि अंधेरे में रखकर लोगों को उजाड़ना चाहिए।”
नागरिकों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि इस बात का स्पष्ट संकेत देती है कि शहर के अन्य क्षेत्रों में भी यह आशंका घर कर गई है कि निगम की अगली कार्रवाई कहीं उनके घरों पर न आ जाए, जिससे पूरा शहर एक “असुरक्षा भाव” की चपेट में आ गया है।

113 परिवारों का दर्द: ‘पट्टाधारी’ से ‘अवैध कब्जाधारी’ कैसे?
इस आंदोलन के केंद्र में दुर्गानगर और चौक क्षेत्र के वे 113 परिवार हैं, जिन्हें बेदखली का नोटिस थमाया गया है। इनमें से कई परिवार तीन पीढ़ियों से इसी भूमि पर बसे हुए हैं। इन बुजुर्ग निवासियों की आँखों में अपने आशियाने को खोने का स्पष्ट भय दिखाई देता है, जबकि उनके बच्चों के भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
आंदोलनकारियों ने निगम के दावे पर गंभीर सवाल उठाए हैं:
कर भुगतान का इतिहास: इन परिवारों ने वर्षों से संपत्तिकर, जलकर और अन्य नगरीय कर समय-समय पर जमा किए हैं, जिससे निगम को राजस्व प्राप्त होता रहा है।
राजीव आश्रय योजना का पट्टा: स्थानीय नागरिकों ने बताया कि उन्हें राजीव आश्रय योजना के तहत बकायदा पट्टा दिया गया था, और 10 रुपये प्रति वर्गफुट प्रीमियम राशि का भुगतान कर उसकी रसीद भी जारी की गई थी।
ऐसी स्थिति में, जिन नागरिकों को सरकार की ही योजना के तहत वैध पट्टा दिया गया था, उन्हें अचानक ‘अवैध कब्जाधारी’ बता देना कानून और न्याय दोनों के सिद्धांतों के विपरीत है। निवासियों का आरोप है कि पट्टा निरस्तीकरण या बेदखली का कोई भी स्पष्ट नोटिस या ठोस आधार नगर निगम ने प्रस्तुत नहीं किया है।
पुनर्वास का पुराना ज़ख्म: रामनगर से चिंगराजपारा तक की त्रासदियाँ
धरना स्थल पर मौजूद वरिष्ठ नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पिछली तोड़फोड़ की घटनाओं का हवाला देकर जनता की आशंकाओं को सही ठहराया। उन्होंने बताया कि इससे पहले रामनगर, श्यामनगर, चिंगराजपारा जैसे क्षेत्रों में भी सड़क चौड़ीकरण और नाली विस्तार के नाम पर घरों को तोड़ा गया था।
“पूर्व की घटनाओं में, कई परिवारों को उचित और मानवीय पुनर्वास नहीं मिला, और वे आज भी किराए के घरों में संघर्ष कर रहे हैं। इन त्रासदियों ने ही शहर के अन्य इलाकों, जैसे मोपका, चिल्हांटी, बहतराई, खमतराई, बिरकोना, मंगला, में गहरे भय का वातावरण बना दिया है।
यह आशंका ही इस आंदोलन को लिंगियाडीह की सीमाओं से परे ले जाकर, पूरे बिलासपुर शहर के आवास और पुनर्वास नीति का सवाल बना रही है।
संघर्ष की कमान ‘नारी शक्ति’ के हाथ में: महिलाओं की अभूतपूर्व उपस्थिति
आंदोलन के 18वें दिन की सबसे महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक विशेषता महिलाओं की अभूतपूर्व उपस्थिति और नेतृत्व है। प्रतिदिन सैकड़ों महिलाएँ धरना स्थल पर पहुँचकर अपने परिवारों की सुरक्षा की लड़ाई लड़ रही हैं। यशोदा पाटिल, अपर्णा पटेल, साधना यादव, पिंकी देवांगन, नंदकुमारी देवांगन, सुखमती, सबिता गोस्वामी, पुष्पा देवांगन और दर्जनों अन्य महिलाओं ने इस संघर्ष का नेतृत्व संभाल रखा है।
महिलाएँ तख्तियाँ लेकर मुखर हो रही हैं, जिन पर लिखा है:
“हमारे घर नहीं टूटेंगे”
“बच्चों का भविष्य सुरक्षित करो”
“बेदखली नहीं, अधिकार चाहिए”
महिलाओं का तर्क स्पष्ट है:
“हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन विकास के नाम पर किसी भी परिवार को बिना उचित, सुरक्षित और मानवीय पुनर्वास योजना के उजाड़ना, सीधे-सीधे हमारे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।”
यह महिला नेतृत्व आंदोलन को एक नई भावनात्मक गहराई और अदम्य शक्ति प्रदान कर रहा है।
पत्रकार संगठन का समर्थन: आंदोलन को मिला नैतिक बल
इस व्यापक जनांदोलन को आज छत्तीसगढ़ प्रखर पत्रकार महासंघ का भी नैतिक समर्थन मिला। प्रदेश अध्यक्ष विनय मिश्रा, कार्यकारी अध्यक्ष उमाकांत मिश्रा, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र कश्यप और जिला अध्यक्ष कमल दुसेजा सहित अनेक सदस्यों ने धरना स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। पत्रकार संगठन के समर्थन ने आंदोलन को न केवल नैतिक बल दिया है, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया है कि नागरिकों के अधिकारों की यह आवाज शहर के हर कोने तक पहुँचे।
नागरिकों की अंतिम चेतावनी: “नहीं तोड़ने देंगे घर, चाहे कीमत जो हो”
धरना स्थल पर नागरिकों ने अपनी माँगों को एक बार फिर पुरजोर तरीके से दोहराया। उनका सामूहिक संकल्प स्पष्ट है कि अब वे पीछे नहीं हटेंगे।
आंदोलनकारियों की मुख्य माँगें: बेदखली की कार्रवाई तत्काल रोकी जाए।
पट्टा प्राप्त परिवारों को पूर्ण वैध मान्यता दी जाए।
किसी भी विकास परियोजना से पहले पुनर्वास की ठोस, मानवीय व्यवस्था लागू की जाए।
नगर निगम जनता के समक्ष अपनी पूरी विकास योजना पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत करे।
नागरिकों ने ऐलान किया है कि यदि प्रशासन जल्द कोई मानवीय और न्यायसंगत समाधान प्रस्तुत नहीं करता है, तो यह आंदोलन और तीव्र किया जाएगा, और शहर में बड़े पैमाने पर सत्याग्रह और रैलियाँ निकाली जाएँगी।
लिंगियाडीह का यह संघर्ष अब केवल आवास का संघर्ष नहीं, बल्कि पारदर्शिता, न्याय और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का एक महासंग्राम बन चुका है। बिलासपुर की निगाहें अब प्रशासन के अगले कदम पर टिकी हुई हैं।


