
रिपोर्टर — सुरज पुरेना
Bilaspur / छत्तीसगढ़ में स्कूलों के युक्तियुक्तकरण को लेकर शिक्षकों में गहरी नाराजगी फैलती जा रही है। सरकार द्वारा शिक्षकों के स्थानांतरण और स्कूलों के पुनर्गठन की मंशा भले ही शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करने की हो, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और संवेदनशीलता की कमी से शिक्षक वर्ग आक्रोशित है।
बिलासपुर से एक मार्मिक मामला सामने आया है, जिसने इस असंतोष को और हवा दे दी है। लक्ष्मी राठौर नामक महिला शिक्षिका और उनके पति को बिना पूर्व सूचना और आपत्ति दर्ज करने का अवसर दिए, दूरस्थ क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया। जब वे अपनी आपत्ति दर्ज कराने जिला कलेक्टर कार्यालय पहुँचे, तो उन्हें “नाटक करने वाली” और “नौटंकीबाज” कहकर वहां से भगा दिया गया। यह व्यवहार न केवल अमानवीय था, बल्कि शिक्षक समाज के आत्मसम्मान पर भी चोट जैसा महसूस हुआ।
लक्ष्मी राठौर के पति ने मीडिया से बातचीत में बताया, “हम पिछले 20 सालों से एक ही जिले में सेवा दे रहे हैं। यदि स्थानांतरण अनिवार्य है, तो हमारी बात तो सुनी जाए। हमने अधिकारियों से हाथ जोड़कर निवेदन किया, लेकिन बदले में अपमान झेलना पड़ा।”
इस घटना के सामने आने के बाद शिक्षकों के संगठनों ने युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि प्रक्रिया न केवल अपारदर्शी है, बल्कि पक्षपातपूर्ण भी प्रतीत होती है। दावा-आपत्ति की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, जिससे अनेक शिक्षक बिना किसी सूचना के दूर-दराज के इलाकों में भेज दिए गए हैं।
शिक्षकों का आरोप है कि सरकार शिक्षकविहीन स्कूलों की समस्या सुलझाने के नाम पर शिक्षकों को जबरन भेज रही है, लेकिन इसमें मानवीय पहलुओं और व्यावहारिक कठिनाइयों को नजरअंदाज किया जा रहा है। इससे न केवल शिक्षकों का मनोबल टूट रहा है, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो सकती है।
शिक्षकों ने शासन से मांग की है कि युक्तियुक्तकरण की पूरी प्रक्रिया पर पुनर्विचार किया जाए और सभी आपत्तियों को गंभीरता से सुना जाए, ताकि शिक्षा सुधार के इस प्रयास में शिक्षकों का आत्मसम्मान और सहयोग बना रहे।